उत्सव के रंग...

भारतीय संस्कृति में उत्सवों और त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर संस्कार को एक उत्सव का रूप देकर उसकी सामाजिक स्वीकार्यता को स्थापित करना भारतीय लोक संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता रही है। भारत में उत्सव व त्यौहारों का सम्बन्ध किसी जाति, धर्म, भाषा या क्षेत्र से न होकर समभाव से है और हर त्यौहार के पीछे एक ही भावना छिपी होती है- मानवीय गरिमा को समृद्ध करना। "उत्सव के रंग" ब्लॉग का उद्देश्य पर्व-त्यौहार, संस्कृति और उसके लोकरंजक तत्वों को पेश करने के साथ-साथ इनमें निहित जीवन-मूल्यों का अहसास कराना है. आज त्यौहारों की भावना गौड़ हो गई है, दिखावटीपन प्रमुख हो गया है. ऐसे में जरुरत है कि हम अपनी उत्सवी परंपरा की मूल भावनाओं की ओर लौटें. इन पारंपरिक त्यौहारों के अलावा आजकल हर दिन कोई न कोई 'डे' मनाया जाता है. हमारी कोशिश होगी कि ऐसे विशिष्ट दिवसों के बारे में भी इस ब्लॉग पर जानकारी दी जा सके. इस उत्सवी परंपरा में गद्य व पद्य दोनों तरह की रचनाएँ शामिल होंगीं !- कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव (ब्लॉग संयोजक)

सोमवार, 24 अगस्त 2009

महिमा अपरम्पार है भगवान गणेश की

भारतीय संस्कृति में भगवान गणेश को आदि देवता माना गया है.उनका पूजन किए बगैर कोई कार्य प्रारम्भ नहीं होता।गणपति विघ्नहर्ता हैं, इसलिए नौटंकी से लेकर विवाह की एवं गृह प्रवेश जैसी समस्त विधियों के प्रारंभ में गणेश पूजन किया जाता है।
पत्र अथवा अन्य कुछ लिखते समय सर्वप्रथम॥ श्री गणेशाय नमः॥, ॥श्री सरस्वत्यै नमः॥, ॥श्री गुरुभ्यो नमः॥ ऐसा लिखने की प्राचीन पद्धति थी। ऐसा ही क्रम क्यों बना? किसी भी विषय का ज्ञान प्रथम बुद्धि द्वारा ही होता है व गणपति बुद्धि दाता हैं, इसलिए प्रथम '॥ श्री गणेशाय नमः ॥' लिखना चाहिए। विघ्न हरण करने वाले देवता के रूप में पूज्य गणेश जी सभी बाधाओं को दूर करने तथा मनोकामना को पूरा करने वाले देवता हैं। श्री गणेश निष्कपटता, विवेकशीलता, अबोधिता एवं निष्कलंकता प्रदान करने वाले देवता हैं। उनके ध्यानमात्र से व्यक्ति उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर होता है। जहाँ तक सामान्यजन का सवाल है, वह आज भी चरम आस्तिक भाव से 'ॐ गणानां त्वां गणपति गुं हवामहे' का पाठ करके सुरक्षा-समृद्धि का एक भाव पा लेता है, जो किसी भी देव की आराधना का शायद मूल कारण है।

गणपति विवेकशीलता के परिचायक है। गणपति का वर्ण लाल है; उनकी पूजा में लाल वस्त्र, लाल फूल व रक्तचंदन का प्रयोग किया जाता है। हाथी के कान हैं सूपा जैसे सूपा का धर्म है 'सार-सार को गहि लिए और थोथा देही उड़ाय' सूपा सिर्फ अनाज रखता है। हमें कान का कच्चा नहीं सच्चा होना चाहिए। कान से सुनें सभी की, लेकिन उतारें अंतर में सत्य को। आँखें सूक्ष्म हैं जो जीवन में सूक्ष्म दृष्टि रखने की प्रेरणा देती हैं। नाक बड़ा यानि दुर्गन्ध (विपदा) को दूर से ही पहचान सकें। गणेशजी के दो दाँत हैं एक अखण्ड और दूसरा खण्डित। अखण्ड दांत श्रद्धा का प्रतीक है यानि श्रद्धा हमेशा बनाए रखना चाहिए। खण्डित दाँत है बुद्धि का प्रतीक इसका तात्पर्य एक बार बुद्धि भ्रमित हो, लेकिन श्रद्धा न डगमगाए। गणेश जी के आयुध औश्र प्रतीकों से अंकुश हैं, वह जो आनंद व विद्या की प्राप्ति में बाधक शक्तियों का नाश करता है। कमर से लिपटा नाग अर्थात विश्व कुंडलिनी
और लिपटे हुए नाग का फन अर्थात जागृत कुंडलिनी. मूषक अर्थात्‌ रजोगुण, गणपति के नियंत्रण में है।

मोदक गणेश जो को बहुत प्रिय है, पर सांसारिक दुनिया से परे इसका भी आध्यात्मिक भाव है.'मोद' यानी आनंद व 'क' का अर्थ है छोटा-सा भाग। अतः मोदक यानी आनंद का छोटा-सा भाग। मोदक का आकार नारियल समान, यानी 'ख' नामक ब्रह्मरंध्र के खोल जैसा होता है। कुंडलिनी के 'ख' तक पहुँचने पर आनंद की अनुभूति होती है। हाथ में रखे मोदक का अर्थ है कि उस हाथ में आनंद प्रदान करने की शक्ति है। 'मोदक मान का प्रतीक है, इसलिए उसे ज्ञानमोदक भी कहते हैं। आरंभ में लगता है कि ज्ञान थोड़ा सा ही है (मोदक का ऊपरी भाग इसका प्रतीक है।), परंतु अभ्यास आरंभ करने पर समझ आता है कि ज्ञान अथाह है। (मोदक का निचला भाग इसका प्रतीक है।) जैसे मोदक मीठा होता। वैसे ही ज्ञान से प्राप्त आनंद भी।'

आजादी की लड़ाई के दौर में भी भगवान गणेश से प्राप्त अभय के वरदान से सज्जित होने की भावना ने समूचे स्वतंत्रता आंदोलन को एक नया आयाम दे दिया था। बाल गंगाधर तिलक ने स्वतंत्रता को राजनीतिक संदर्भों से उबारकर देश की सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक-चेतना से जोड़ा था। सौ साल से भी अधिक काल से चली आ रही यह सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, राजनीतिक चेतना की त्रिवेणी हर साल गणेशोत्सव के अवसर पर नए-नए रूपों में सामने आती है। लोकमान्य तिलक ने सार्वजनिक गणेशोत्सव की जो परंपरा शुरू की थी वह फल-फूल रही है।

गणेशोत्सव धर्म, जाति, वर्ग और भाषा से ऊपर उठकर सबका उत्सव बन गया है । गणपति बप्पा मोरया का स्वर जब गूँजता है तो उसमें हिन्दुओं, मुसलमानों, सिखों, ईसाइयों की सम्मिलित आस्था का वेग होता है । किसी गोविंदा और किसी सलमान के घर में गणपति की एक जैसी आरती का होना कुल मिलाकर उस एकात्मकता का ही परिचय देता है जो हमारे देश की एक विशिष्ट पहचान है। साल-दर-साल गणेशोत्सव पर इस विशिष्टता का रेखांकित होना अपने आप में एक आश्वस्ति है।

गणेशोत्सव के अवसर पर एक और महत्वपूर्ण तथ्य भी रेखांकित होना चाहिए- गणेश अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति सजगता एवं सक्रियता के देवता भी हैं । इसलिए जब हम गणपति की पूजा करते हैं तो इसका अर्थ स्वयं को उस चेतना से जोड़ना भी है जो जीवन को परिभाषित भी करती है और उसे अर्थवत्ता भी देती है। यह चेतना अपने अधिकारों की रक्षा के प्रति जागरूकता देती है और अपने कर्तव्यों को पूरा करने की प्रेरणा भी।

3 टिप्‍पणियां:

Amit Kumar Yadav ने कहा…

बहुत खूब, आपने गणपति जी की महिमा के बारे में सारगर्भित जानकारी दी.

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

....अब समझ में आया कि गणेश जी आदि-देवता क्यों कहे जाते हैं.

शरद कुमार ने कहा…

गणेश जी की की कृपा-दृष्टि आप पर बनी रहे....शुभकामनाओं सहित.